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Showing posts from July, 2020

गुरुतीर्थ

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गुरुतीर्थ बड़ा उत्तम तीर्थ है , मैं उसका वर्णन करता हूँ । गुरु के अनुग्रह से शिष्य को लौकिक आचार - व्यवहार का ज्ञान होता है , विज्ञान की प्राप्ति होती है और वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है । जैसे सूर्य सम्पूर्ण लोकों को प्रकाशित करते हैं , उसी प्रकार गुरु शिष्यों को उत्तम बुद्धि देकर उनके अन्तर्जगत् को प्रकाशपूर्ण बनाते हैं । सूर्य दिन में प्रकाश करते हैं , चन्द्रमा रात में प्रकाशित होते हैं और दीपक केवल घर के भीतर उजाला करता है ; परन्तु गुरु अपने शिष्य के हृदय में सदा ही प्रकाश फैलाते रहते हैं । वे शिष्य के अज्ञानमय अंधकार का नाश करते हैं , अत : शिष्य के लिए गुरु ही सबसे उत्तम तीर्थ साभार - कल्याण , पद्मपुराणांक

प्रेरक प्रसंग 2

गेटे जर्मनी का एक बहुत बड़ा नाटककार हुआ है । वह अपने कार्य में इतना रम गया कि अपने आप को इस विश्व का एक पात्र ही अनुभव करने लगा था । मरते समय उसके चेहरे पर बच्चों जैसी मुस्कराहट थी । अंतिम साँस छोड़ते हुए उसने जोर से ताली बजाई और उपस्थित लोगों को उँगली के इशारे से बताया- " लो अब परदा गिरता है और एक बढ़िया नाटक का अंत होता है । " वस्तुत : जीवन ऐसा ही जीना चाहिए , जैसे नाटक का एक कलाकार जीता है । इसी को आध्यात्मिक संदर्भ में संत , भगवान की कठपुतली बनकर जीने के रूप में समझाते हैं ।

संक्रमण काल

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समय  यह संक्रमण काल का   धैर्य का  मनुहार  का , भावनाओं के पहचान  का ।            नहीं  समय  यह             कुमंत्रनाओ  का            नहीं समय यह             विचारों   के जंजाल का   है  समय यह संक्रमण काल का । धैर्य का साहस  और आत्मविशस  का ।           मौन  हो  गई है सड़कें,           खामोश  हो गयी है दरवाजे           तरस  गई है आँखे           किसी  की आहटों  के लिए । काल ने  करवट ली है  हमारी  तुम्हारी  परीक्षा  की  घड़ी  है ।           है समय यह             भावनाओं  का            संवेदनाओं  का,...

गुरुदेव की शिक्षा

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एक सेठ था । उसने रुपयों से भरी एक थैली कबीर साहब के सामने रख दी और कहा कि आप ईश्वर को जानते हैं , मुझे नाम - भेद बतला दीजिए । कबीर साहब ने कहा , भीतर में लोई है , उसके पास जाओ । ' वह सेठ भीतर गया । सेठ को देखकर लोई ताना - बाना काटनेवाली छुरी तेज करने लगी । सोठजी ने पूजा , छुरी  से क्या करोगी ? ' लोई ने कहा कि ' इस छुरी से तुम्हारा गला काटूंगी । ' यह सुनकर सेठ भय के मारे भागा । कबीर साहब ने सेठजी से पूछा , ' क्यों भाग रहे हो ? ' सेठ ने कहा , ' मैं तो समझता था कि यह साधु का घर है । लेकिन यह तो डकैत का घर है । ' कबीर साहब ने नजदीक बुलाकर समझाया कि भाई ! तुमने समझा नहीं । नाम - भेद लेने के लिए अपने को दीन बनाओ । घमंड रखने से कहीं नामदान मिलता है ? ' सीस दीजिए दान ' यानी घमंड को छोड़ देना चाहिए । साधन - भजन करने के लि समय बाँट लेना चाहिए । पिछले पहर रात में , दिन में स्नान के तुरन्त बाद और सायंकाल तीनों समय नित्य अभ्यास करते रहना चाहिए । ऐसा करने से सांसारिक कामों में भी बाधा नहीं होगी । -सद्गुरु महर्षि मेंही परमाहंस।

The real meaning of liberty

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देखो न

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गुमशुम सी आँखों मे  अब बस इंतज़ार रह गई, सूजी हुई आँखें,   मुरझाए हुए चेहरे- चेहरे पर उदासी और आँखों में इंतज़ार। टकटकी लगाए दरवाजे पर किसी के आने का इंतज़ार,   मुझे देखकर वो बुदबुदायी- मैंने कई पौधे लगाए थे आंगन मे  सभी को सींचे, सभी पौधों मे खुबशुरत फूल   और उसकी खुशबु, चारोओर- सुगंध ही सुगंध, खिलखिलाती,चहकती गौरैया की आवाज़। देखो सभी फूल कैसे मुरझा गए, वो फुदकती चिडियाँ भी न जाने कहाँ अपना घोंसला बना ली,  अब मैं किसी फूल में पानी जो नहीं डालसकती । देखो न  इसलिए सभी फूल कैसे मुझसे रूठ गये ।  रातों  की नींद गवांई  मैंने,  सुख और चैन खो दिया-   फिर भी पता नहीं क्या कमी रह         गयी जो सारे मुरझा गये ?  कहाँ गलती की थी मैंने?  वही ढूंढ रही हूँ   बस अब वही सोचती रहती हूँ ।  देखो न  इस देहलीज पर मेरे महावर        लगे पाँव परे थे न ,  कोमल सी , उजली सी मखमल    सी।  काले घने मेरे लहराते बाल   ...

प्रेरक प्रसंग। (सत्य का सहारा)

१. एक चोर भागा , कबीर के घर में घुसा , बोला - मैं चोर हूँ , छिपने की जगह दे दो । कबीर ने कहा - रुई के ढेर में छिप जाओ । चोर छिप गया । सिपाही आए , बोले - कबीर , कबीर ! तूने चोर को देखा । कबीर ने कहा - हाँ , रूई के ढेर में छिपा है । चोर के प्राण सूख रहे थे । आज किस बाबा के चक्कर में पड़ गया । सिपाही ने सोचा , मजाक कर रहा है । ऐसा कैसे हो सकता है कि इसके सामने कोई रूई के ढेर में छिप जाए । वे चले गए । चोर निकल आया । बोला - आज तो मरवा ही डालते आप , वे तो चले गए भला । तब कबीर ने कहा - अरे , क्या मैं झूठ बोलता ? क्या सत्य में इतनी ताकत नहीं , जो तुम्हें बचा सके ? सत्य क्या मिट गया है । झूठ में ताकत नहीं । सत्य में ताकत है । मुझे विश्वास था , मेस सत्य तेरी रक्षा करेगा ।

बरी जबर्दस्त चिज।

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एक ऐसी चीज है , जो बड़ी जबर्दस्त है । वह क्या है ? वह है शीलता। यह ' जबर्दस्त शब्द फारसी भाषा का है । शीलता कहते है सचाई और नम्रतापूर्वक किए गये आचरण को । इसके लिए एक उदाहरण देता हूँ । कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव और पाण्डव सेनाओं के साथ युद्ध के लिए आमने सामने तैयार थे । उसी समय युधिष्ठिर महाराज ने अपने अस्त्र शस्त्र पख दिए और पैदल ही भीष्म पितामह की ओर चल पड़े । किसी से कुछ नहीं कहा । उनको देखकर दुर्योधन पक्ष के लोग कहने लगे कि देखो , युधिष्ठिर डरकर भीम पितामह की शरण में आ रहे हैं । जब युधिष्ठिरजी भीष्म पितामाह के पास गये , तो भीष्म पितामह ने पूछा- " इस समय तुम यहाँ क्यों आये हो ? " युधिष्ठिरजी ने उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए कहा कि मैं आपसे आशीर्वाद लेने के लिए आया हूँ कि युद्ध में शत्रुओं को परास्त कर सकूँ । इसपर भीष्मजी बहुत खुश हुए और उनको आशीर्वाद दिया कि तुम अवश्य युद्ध में शत्रुओं को परास्त करोगे । यह युधि ष्ठिरजी की शीलता थी । भीष्म ने कहा कि यदि तुम इस समय मेरे पास नहीं आते , तो मैं अवश्य ही तुम्हारी हार की कामना करता । इसी तरह से युधिष्टिरजी ने बारी - बा...

ज्ञान की महत्ता।

                जो अपनी जिन्दगी ज्ञानोपार्जन में लगा देता है , उसकी मौत नहीं होती । जो अपने आपको जानता है , वह अल्लाह को जानता है । + जो ज्ञानी का आदर करता है , वह मेरा आदर करता है । + जो भी ज्ञान की खोज करता है , वह उसे पा जाता है । + अत्यधिक ज्ञान अत्यधिक इबादत से बेहतर है । एक घण्टा जान दान करना , रात भर इबादत करने से बेहतर है । * जो ज्ञान की खोज में घर - बार छोड़ देता है , वह अल्लाह के रास्ते पर चलता है । • सानार्जन प्रत्येक मुसलमान स्त्री और पुरुष का एक अनिवार्य कर्तव्य है । हान व्यक्ति को सही और गलत में विवेक करने के योग्य बनाता है । झारपात करने के लिए दुनिया के उस छोर तक जाओ ।

Gurudev ki vani

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आँखें बन्द करके ध्यानाभ्यास करो अभी आपलोग नेत्र बन्द करने की बात सुन रहे थे । आँखें बन्द करने की बात मैं कहता हूँ - जब शमीक मुनि आँखें बन्द किए निश्चेष्ट होकर बैठे थे . उस समय राजा परीक्षित् थे , जो अर्जुन के पौत्र थे । वे कलियुग के राजा थे । शमीक मुनि की आँखें बन्द थीं । राजा परीक्षित को प्यास लगी थी । वे मुनि के पास गये । मुनि ध्यानमग्न थे । इसीलिए वे राजा का सत्कार नहीं कर सके । इससे राजा परीक्षित् को मुनि के प्रति क्रोध उत्पन्न हुआ । उन्होंने शमीक मुनि के गले में मरे हुए साँप को पहना दिया । मुनिजी के पुत्र को , जो बालकों के साथ खेल रहे थे , मालूम हुआ कि राजा परीक्षित् ने उनके पिता के गले में मरा हुआ सौंप लपेट दिया है । यह सुनते ही मुनि बालक ने शाप कर दिया कि आज से सातवे दिन राजा परीक्षित् को तक्षक दंशित करेगा । राजा परीक्षित् के सर्प यज्ञ करने के बावजूद तक्षक ने दशित कर ही लिया । इस प्रसंग से ज्ञात होता है कि आँखें बन्द करने की बात बहुत पुरानी है । ( शान्ति संदेश , मार्च अंक ,