गुरुदेव की शिक्षा
एक सेठ था । उसने रुपयों से भरी एक थैली कबीर साहब के सामने रख दी और कहा कि आप ईश्वर को जानते हैं , मुझे नाम - भेद बतला दीजिए । कबीर साहब ने कहा , भीतर में लोई है , उसके पास जाओ । ' वह सेठ भीतर गया । सेठ को देखकर लोई ताना - बाना काटनेवाली छुरी तेज करने लगी । सोठजी ने पूजा , छुरी से क्या करोगी ? ' लोई ने कहा कि ' इस छुरी से तुम्हारा गला काटूंगी । ' यह सुनकर सेठ भय के मारे भागा । कबीर साहब ने सेठजी से पूछा , ' क्यों भाग रहे हो ? ' सेठ ने कहा , ' मैं तो समझता था कि यह साधु का घर है । लेकिन यह तो डकैत का घर है । ' कबीर साहब ने नजदीक बुलाकर समझाया कि भाई ! तुमने समझा नहीं । नाम - भेद लेने के लिए अपने को दीन बनाओ । घमंड रखने से कहीं नामदान मिलता है ? ' सीस दीजिए दान ' यानी घमंड को छोड़ देना चाहिए । साधन - भजन करने के लि समय बाँट लेना चाहिए । पिछले पहर रात में , दिन में स्नान के तुरन्त बाद और सायंकाल तीनों समय नित्य अभ्यास करते रहना चाहिए । ऐसा करने से सांसारिक कामों में भी बाधा नहीं होगी । -सद्गुरु महर्षि मेंही परमाहंस।
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